शब्द जो उठते हैं ख़िलाफ़त में वो शब्द देशद्रोही क़रार हो जाते हैं! क्या सरकार के खिलाफ़ बोलने वाले देशद्रोही कहलाते है? परंतु लोकतंत्र तो अपने विचार स्पष्ट करने की अनुमति देता हैं.... सरकार किसकी है, फिर क्या फ़र्क़ पड़ता हैं! दुविधा हैं जनता की, सिर्फ सुझाव पर सुझाव देते हैं क्या फ़र्क़ पड़ता हैं उन्हें, वो तो आलीशान महल में आराम से बैठे हैं सच को आज छुपाया जाता हैं! आज झूठ का बोल-बाला हैं!! रोटी बासी हैं पर साहब ग़रीब की भूख ताजी़ हैं... ये क्या जाने वो जिनको हवा भी शुद्ध भाती हैं! कुर्सी से बढ़कर शायद और कुछ नहीं था सियासत के अलावा और कुछ दिखता नहीं था जनता क्या होती हैं ये चुनाव के वक़्त याद आता हैं! हिन्दू-मुसलमान के नाम पर एकता को भंग किया जाता है जनता ही मूर्ख हैं जो समझकर भी समझती नहीं हैं! गरीबी, बेरोज़गारी और राजनीति इन्हें दिखती नहीं हैं और आप जैसे लोग बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं! हमारे देश को खोकला कर, अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं आज भी वो सिर्फ सत्ता जीतने के लिए बैठे हैं झूठे वादों से अपने, देश की सहानुभूती लूटने बैठे हैं
~ कायनात सुल्ताना कु़रेशी
Bahut sahi kaha. 👏